छोटे छोटे सवाल –१०
किसी ने प्रतिवाद नहीं किया। असरार ने वातावरण का रुख बदला, "सब चलता है, यार । हमारे तो एक टीचर क्लास में पढ़ाते हुए सिगरेट पिया करते थे। कहते थे, बिना सिगरेट के मुझे पढ़ाने का 'इन्सपिरेशन' ही नहीं मिलता। प्रिंसिपल ने भी एतराज किया, मगर उन्होंने साफ कह दिया कि साहब चाहे मुझे स्कूल से निकाल दीजिए, मगर मेरी सिगरेट नहीं छूट सकती। आखिर कुछ भी नहीं हुआ।"
श्रोत्रिय ने ठाकुर के पैकेट से सिगरेट निकालते हुए कहा, "अपने-अपने ढब की बात है भई ! हमारे स्कूल में तो 'एक्सपलेनेशन काल' हो गया था इसी बात पर एक टीचर का।" और उसने सिगरेट सुलगा ली। एक सिगरेट असरार ने ली। प्रोफ़ेसरी के उम्मीदवारों में से किसी ने सिगरेट नहीं ली हालांकि वे पीते थे। ठाकुर ने सबके सामने पैकेट घुमाया पर सत्यव्रत के सामने तक बढ़ाकर भी हाथ खींच लिया; बोला, "माफ़ कीजिए, आप तो पीते ही नहीं होंगे?" "जी हाँ, मैं नहीं पीता।" सत्यव्रत ने कहा और सरलता से मुस्करा दिया।
सबके चेहरों पर पवित्र-सी हँसी फैल गई। वातावरण का बोझ कुछ हल्का-सा हुआ। लेक्चररशिप के उम्मीदवारों ने एक-दूसरे की ओर देखा। धीरे से पाठक माथुर से बोला, "तुम भी पियो न !" माथुर बोला, "क्या आफ़त है, यार ! भाग्य का निर्णय हो ले, उसके बाद गूंगे की दुकान पर चलकर चाय भी पिएंगे और सिगरेट भी।" पाठक आश्वस्त हो गया। सिगरेट पीने की प्रबल इच्छा को मारने के लिए उसने दोनों हाथ उठाकर एक जमुहाई ली और साँस छोड़ते हुए बोला, "ओ...म।"
अचानक ही श्रोत्रिय और असरार उछलकर खड़े हो गए और डेस्क से रगड़कर उन्होंने सिगरेटें बुझा दीं। उन्हें मास्टर उत्तमचन्द की झलक मिल गई थी। और लोग भी उठ खड़े हुए। राजेश्वर भी खड़ा हो गया। मगर उसने सिगरेट नहीं बुझाई। मुंह में धुआँ भरे वह मास्टर उत्तमचन्द की नजरें दूसरी ओर घूमने की प्रतीक्षा करने लगा।
उत्तमचन्द ने कहा, "आप शायद 'स्मोकिंग' कर रहे थे?" उनकी वाणी में मिठास पहले से कुछ कम थी। बोले, "मुझे बताएँ, कौन साहब स्मोकिंग कर रहे हैं?" सब चुप रहे किन्तु राजेश्वर ने मुँह का धुआँ बाहर निकालते हुए कहा, "कहिए ! एक तो मैं था, और दूसरे असरार साहब और सोतीजी !" असरार और श्रोत्रिय दोनों को बुरा लगा, मगर चुप रहे। उत्तमचन्द बोले, "क्या आपको मालूम नहीं कि 'कॉलेज-प्रीमीसेज़' में सिगरेट नहीं पीनी चाहिए?"